सच यह है..ढोल गंवार शूद्र पशु नारी । सकल ताड़ना के अधिकारी ।।

। श्रीहरिः।
  ढोल गंवार शूद्र पशु नारी ।
"सकल ताड़ना के अधिकारी"।।
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अभी श्रीरामचरितमानस की एक चौपाई पर हंगामा मचा पड़ा है, हंगामा करने वाले पूरी चौपाई बता ही नहीं रहे, बस अंत की दो पंक्ति बताते फिर रहे हैं, क्योंकि उनका एजेंडा वहीं सेट हो रहा है, पंक्ति हैं- 

ढोल गंवार सूद्र पशु नारी,
सकल ताड़ना के अधिकारी

पूरी चौपाई पढ़े तो समझ आएगा कि ताड़ना शब्द किस सन्दर्भ में प्रयुक्त हो रहा है। पूरी चौपाई इस प्रकार है-

प्रभु भल किन्ह मोहि सिख दीनी
मरजादा पुनि तुम्हरी किन्ही।
ढोल गंवार सूद्र पशु नारी
सकल ताड़ना के अधिकारी।।

इस चौपाई की प्रथम पंक्ति में स्पष्ट हो रहा है कि प्रभु ने भला किया कि मुझे शिक्षा दी, अब इसी शिक्षा को कुछ अन्य तरह से तुलसीदासजी ने समझाने के लिए ढोल गंवार सूद्र पशु नारी का उदाहरण दिया।

अब कुछ लोग कहेंगे कि चलो माना कि गंवार शुद्र और नारी को तो ताड़ना का अर्थ शिक्षित करना मान लेंगे परन्तु ढोल और पशु को कैसे शिक्षा दी जा सकती है ?

दरअसल मेरा मानना तो यह है कि जो श्रीरामचरितमानस पर उंगली उठाता है, उसने न तो अवधी भाषा पढ़ी और न ही हिंदी भाषा पढ़ी। हिंदी भाषा का अलंकार वाला अध्याय अगर ढंग से पढ़ लिया होता तो यह नौबत न आती।
दरअसल यहां ताड़ना शब्द के कई अर्थ हैं जो कि भिन्न भिन्न शब्द के साथ भिन्न भिन्न अर्थ दे रहा है। यहां ढोल के साथ ताड़ना शब्द का अर्थ पीटना है, गंवार, शुद्र और नारी के साथ ताड़ना का अर्थ शिक्षित करना है और पशु के साथ ताड़ना का अर्थ ध्यानपूर्वक दृष्टि रखना है।

कुछ लोग कहेंगे कि यह तो मनमर्जी का अर्थ बना रहा है तो आइए श्लेष अलंकार की एक सुप्रसिद्ध पंक्ति से ही समझा देता हूँ--

"सुबरन को खोजत फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर"

यहाँ सुबरन का प्रयोग एक बार किया गया है, किन्तु पंक्ति में प्रयुक्त सुबरन शब्द के तीन अर्थ हैं; कवि के सन्दर्भ में सुबरन का अर्थ अच्छे शब्द, व्यभिचारी के सन्दर्भ में सुबरन का अर्थ सुन्दर वर्ण की स्त्री , चोर के सन्दर्भ में सुबरन का अर्थ सोना है।

और बताइए कि जिस संस्कृति में यह कहा जाता है कि यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमन्ते तत्र देवताः (जहां नारी पूजनीय हो, वहां देव भी निवास करते हैं)

उस संस्कृति के महान् संत, नारी को पिटाई योग्य कैसे कह सकते हैं, यहाँ से भी यह स्पष्ट हो रहा है।

जो तर्कशील व्यक्ति होगा इन सब तथ्यों से उसे स्पष्ट हो गया होगा कि ताड़न का अर्थ किस सन्दर्भ में कहा गया है, बाकी जिसे अन्धविरोध करना ही है उन्हें राम राम।

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